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जीवन के विभिन्न पहलुओं पर ओशो द्वारा दिए गए सात अमृत प्रवचनों का संकलन ।
जहां प्रेम है वहां भय की कोई संभावना नहीं। अगर हम भय को निकालने की कोशिश करेंगे, तो हम ज्यादा से ज्यादा जड़ता को उपलब्ध हो सकते हैं, अभय को नहीं। अगर हम प्रेम को जन्माने की कोशिश करें, तो भय प्रेम के जन्म के साथ ही वैसे ही नष्ट हो जाता है
1. भय या प्रेम
2. प्रेम — अनुशासन — क्रांति
3. महायुद्ध या महाक्रांति
4. धर्म, दर्शन और ध्यान
5. दिमाग के बुनियादी ढांचे तोड़े बिना कोई क्रांति संभव नहीं
6. स्वीकार और समझ से क्रांति
मनुष्य-जाति भय से, चिंता से, दुख और पीड़ा से आक्रांत है, और पांच हजार वर्षों से–आज ही नहीं। जब आज ऐसी बात कही जाती है कि मनुष्यता आज भय से, चिंता से, तनाव से, अशांति से भर गई है तो ऐसा भ्रम पैदा होता है जैसे पहले लोग शांत थे, आनंदित थे।
यह बात शत-प्रतिशत असत्य है कि पहले लोग शांत थे और चिंता-रहित थे। आदमी जैसा आज है वैसा हमेशा था। ढाई हजार वर्ष पहले बुद्ध लोगों को समझा रहे थे, शांत होने के लिए। अगर लोग शांत थे, तो शांति की बात समझानी फिजूल थी? पांच हजार वर्ष पहले उपनिषदों के ऋषि भी लोगों को समझा रहे थे आनंदित होने के लिए; लोगों को समझा रहे थे दुख से मुक्त होने के लिए; लोगों को समझा रहे थे प्रेम करने के लिए। अगर लोग प्रेमपूर्ण थे और शांत थे तो उपनिषद के ऋषि पागल रहे होंगे। किसको समझा रहे थे?
दुनिया में अब तक एक भी ऐसी पुरानी से पुरानी किताब नहीं है जो यह न कहती हो कि आजकल के लोग अशांत हो गए हैं। मैं छह हजार वर्ष पुरानी चीन की एक किताब की भूमिका पढ़ रहा था, उस भूमिका में लिखा है कि आजकल के लोग अशांत है, नास्तिक हैं, बहुत बुरे हो गए हैं, पहले के लोग अच्छे थे। छह हजार साल पहले की किताब कहती है, पहले के लोग अच्छे थे। ये पहले के लोग कब थे? ये पहले के लोगों की बात एक मिथ, एक कल्पना और सपने से ज्यादा नहीं है। आदमी हमेशा से अशांत रहा है। और इसलिए अगर हम यह समझ लें कि आज अशांत है, आज भय से आक्रांत है, आज चिंतित और दुखी है, तो हम जो भी निदान खोजेंगे, जो भी मार्ग खोजेंगे, वह गलत होगा, क्योंकि मार्ग खोजना है…।
आज तक की पूरी मनुष्यता किन्हीं अर्थों में गलत रही है, भ्रांत रही है। आज का आदमी ही नहीं, आज तक की पूरी मनुष्यता ही कुछ गलत रही है। और उसने अपनी गलती को सुधारने के लिए जो कुछ भी किया है उससे गलती मिटी नहीं, उससे और बढ़ती चली गई।
मनुष्य हमेशा से भयभीत है। और भय, फियर के आधार पर ही उसका सारा जीवन खड़ा हुआ है। जब वह मंदिरों में प्रार्थना करता है तब भी भय के कारण। उसने जो भगवान गढ़ रखे हैं, वे भी भय से ही उत्पन्न हुए हैं। जब वह राजधानियों में पदों की यात्रा करता है, बड़े पदों पर पहुंचना चाहता है, तब भी भय के ही कारण। क्योंकि जितने बड़े पद पर कोई होता है उतनी सत्ता और शक्ति उसके हाथ में होती है, उतना भय कम मालूम होगा। इस आशा में आदमी दौड़ता है, दौड़ता है। चंगीज और तैमूर और नेपोलियन और सिकंदर और हिटलर और स्टैलिन सभी भयभीत लोग हैं। सभी घबड़ाए हुए लोग हैं। सभी डरे हुए लोग हैं। उस भय से बचने के लिए बड़ी ताकत हाथ में हो, इसकी चेष्टा में लगे हुए हैं। धन की जो खोज कर रहा है वह भी भयभीत आदमी है। धन से एक सुरक्षा, एक सिक्युरिटी मिल सकेगी, इस आशा में वह धन को इकट्ठा करता चला जा रहा है।
मंदिरों में प्रार्थना करने वाला, राजधानियों की यात्रा करने वाला, धन की तिजोरियों को इकट्ठा कर लेना वाला, ये सभी के सभी भय के आधार पर ही जी रहे हैं। वे जिन्हें आप संन्यासी समझते हैं, जिन्हें आप समझते हैं कि ये परमात्मा के मार्ग पर चले गए लोग हैं, शायद आपको पता न हो कि वे भी किसी आंतरिक भय के कारण ही उस यात्रा में संलग्न हो गए हैं। —ओशो