Product Description
इस पुस्तक में ओशो ने करुणा और क्रांति के मौलिक संबंध को दर्शाया है।
वे कहते हैं, “अगर करुणा आ जाए तो क्रांति अनिवार्य है। क्रांति सिर्फ करुणा की परिधि, छाया से ज्यादा नहीं है।। और जो क्रांति करुणा के बिना आयेगी, बहुत खतरनाक होगी। ऐसी बहुत-सी क्रांतियां हो चुकी हैं और वे जिस बीमारियों को दूर करती है, उनसे बड़ी बीमारियों को अपने पीछे छोड़ जाती है।” **
notes
This is early compilation of talks given in Bombay, Ahmedabad and Ahmednagar found in other books. See discussion for other details.
Chapters 1-2 later published in Shunya Samadhi (शून्य समाधि) as ch.6 and 5 (1976ed.) and in Jeevan Kranti Ki Disha (जीवन क्रांति की दिशा) as ch.2 and 1 respectively.
Chapter 3 later published as ch.1 of Kya Manushya Ek Yantra Hai? (क्या मनुष्य एक यंत्र है?).
Chapter 4 also available in full form as ch.9 (of 10) in Dharm Aur Anand (धर्म और आनंद) and as ch.8 (of 9) in Sukh Aur Shanti (सुख और शांति).
Chapters 5 and 7 later published in Jeevan Darshan (जीवन दर्शन) as ch. 3 & 1 of 2016ed. and ch.5 & 1 of 1975 ed. accordingly.
Chapter 6 later published in Samadhi Ke Teen Charan (समाधि के तीन चरण) as ch.2.
time period of Osho’s original talks/writings
Dec 14, 1965 to Jan 21, 1968 : तिमेलिने