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तीन सूत्र–साक्षी-साधना के
साक्षीभाव की साधना के लिए इन तीन सूत्रों पर ध्यान दो:
1. संसार के कार्य में लगे हुए श्वास के आवागमन के प्रति जागे हुए रहो। शीघ्र ही साक्षी का जन्म हो जाता है।
2. भोजन करते समय स्वाद के प्रति होश रखो। शीघ्र ही साक्षी का आविर्भाव होता है।
3. निद्रा के पूर्व जब कि नींद आ नहीं गई है और जागरण जा रहा है–सम्हलो और देखो। शीघ्र ही साक्षी पा लिया जाता है।
ओशो
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय मैं जानता हूं कि तुम जो कहना चाहते हो, वह कह नहीं पाते हो।
लेकिन, कौन कह पाता है?
प्राणों के सागर के लिए शब्दों की गागर सदा ही छोटी पड़ती है।
जीवन सच ही एक अबूझ पहेली है।
लेकिन, उन्हीं के लिए जो उसे बूझना चाहते हैं।
पर बूझना आवश्यक कहां है?
असली बात है जीना¬-बूझना नहीं।
जीवन जीओ और फिर जीवन पहेली नहीं है।
फिर है जीवन एक रहस्य।
पहेली जीवन को गणित बना देती है।
गणित चिंता और तनाव को जन्माता है।
रहस्य जीवन को बना देता है काव्य।
और काव्य है विश्राम।
काव्य है रोमांस।
और जीवन के साथ जो रोमांस में है, वही धार्मिक है।
तर्क जीवन को समस्या (Problem) की भांति देखता है।
प्रेम जीवन को समाधान जानता है।
इसलिए तर्क अंततः उलझाता है।
और प्रेम समाधि बन जाता है।
समाधि अर्थात पूर्ण समाधान।
इसलिए कहता हूं कि जीवन को तर्क का अभ्यास (Exercise) मत बनाओ; जीवन को बनाओ प्रेम का पाठ।
‘‘ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।’’