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पुस्तक का विवरण : जब मैं कहता हूं कि विज्ञान जीवन को एक पहेली की तरह देखता है, जिसे सुलझाया जा सकता है, तो पूरा दृष्टिकोण बौद्धिक हो जाता है। फिर उसमें बुद्धि समाविष्ट होती है, तुम नहीं। तुम उससे बाहर रह जाते हो। मन ही व्याख्या करता है, मन ही सब संभालता है; मन ही निरीक्षण, विश्लेषण करता है। मन विवाद करता है, संदेह उठाता है, प्रयोग करता है, पर तुम्हारी समग्रता इससे बाहर ही रहती है…………