Product Description
इन प्रवचनों में महावीर वाणी की व्याख्या करते हुए ओशो ने साधना जगत से जुड़े गूढ़ सूत्रों को समसामयिक ढंग से प्रस्तुत किया है। इन सूत्रों में सम्मिलित हैं–समय और मृत्यु का अंतरबोध, अलिप्तता और अनासक्ति का भावबोध, मुमुक्षा के चार बीज, छह लेश्याएं: चेतना में उठी लहरें इत्यादि। महावीर के ये साधना-सूत्र हमारी अंतर्यात्रा को सुगम बनाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
#1: मंत्र : दिव्य-लोक की कुंजी (पंच-नमोकार-सूत्र)
#2: मंगल व लोकोत्तर की भावना (मंगल-भाव-सूत्र)
#3: शरणागति : धर्म का मूल आधार (शरणागति-सूत्र)
#4: धर्म : स्वभाव में होना (धम्म-सूत्र)
#5: अहिंसा : जीवेषणा की मृत्यु (धम्म-सूत्र : अहिंसा)
#6: संयम : मध्य में रुकना (धम्म-सूत्र : संयम-1)
#7: संयम की विधायक दृष्टि (धम्म-सूत्र : संयम-2)
#8: तप : ऊर्जा-शरीर का दिशा-परिवर्तन (धम्म-सूत्र : तप-1)
#9: तप : ऊर्जा-शरीर का अनुभव (धम्म-सूत्र : तप-2)
#10: अनशन : मध्य के क्षण का अनुभव (धम्म-सूत्र : बाह्य-तप-1)
#11: ऊणोदरी एवं वृत्ति-संक्षेप (धम्म-सूत्र : बाह्य-तप-2, 3)
#12: रस-परित्याग और काया-क्लेश (धम्म-सूत्र : बाह्य-तप-4, 5)
#13: संलीनता : अंतर-तप का प्रवेश द्वार (धम्म-सूत्र : बाह्य-तप-6)
#14: प्रायश्चित्त : पहला अंतर-तप (धम्म-सूत्र : अंतर-तप-1)
#15: विनय : परिणति निरअहंकारिता की (धम्म-सूत्र : अंतर-तप-2)
#16: वैयावृत्य और स्वाध्याय (धम्म-सूत्र : अंतर-तप-3, 4)
#17: सामायिक : स्वभाव में ठहर जाना (धम्म-सूत्र : अंतर-तप-5)
#18: कायोत्सर्ग : शरीर से विदा लेने की क्षमता (धम्म-सूत्र : अंतर-तप-6)
जैसे सुबह सूरज निकले और कोई पक्षी आकाश में उड़ने के पहले अपने घोसले के पास परों को तौले, सोचे, साहस जुटाए; या जैसे कोई नदी सागर में गिरने के करीब हो, स्वयं को खोने के निकट, पीछे लौट कर देखे, सोचे क्षण भर, ऐसा ही महावीर की वाणी में प्रवेश के पहले दो क्षण सोच लेना जरूरी है। जैसे पर्वतों में हिमालय है या शिखरों में गौरीशंकर, वैसे ही व्यक्तियों में महावीर हैं। बड़ी है चढ़ाई। जमीन पर खड़े होकर भी गौरीशंकर के हिमाच्छादित शिखर को देखा जा सकता है। लेकिन जिन्हें चढ़ाई करनी हो और शिखर पर पहुंच कर ही शिखर को देखना हो, उन्हें बड़ी तैयारी की जरूरत है। दूर से भी देख सकते हैं महावीर को, लेकिन दूर से जो परिचय होता है वह वास्तविक परिचय नहीं है। महावीर में तो छलांग लगा कर ही वास्तविक परिचय पाया जा सकता है। उस छलांग के पहले जो जरूरी है वे कुछ बातें आपसे कहूं। बहुत बार ऐसा होता है कि हमारे हाथ में निष्पत्तियां रह जाती हैं, कनक्लूजंस रह जाते हैं–प्रक्रियाएं खो जाती हैं। मंजिल रह जाती है, रास्ते खो जाते हैं। शिखर तो दिखाई पड़ता है, लेकिन वह पगडंडी दिखाई नहीं पड़ती जो वहां तक पहुंचा दे। ऐसा ही यह नमोकार मंत्र भी है। यह निष्पत्ति है। इसे पच्चीस सौ वर्ष से लोग दोहराते चले आ रहे हैं। यह शिखर है, लेकिन पगडंडी जो इस नमोकार मंत्र तक पहुंचा दे, वह न मालूम कब की खो गई है। इसके पहले कि हम मंत्र पर बात करें, उस पगडंडी पर थोड़ा सा मार्ग साफ कर लेना उचित होगा। क्योंकि जब तक प्रक्रिया न दिखाई पड़े, तब तक निष्पत्तियां व्यर्थ हैं। और जब तक मार्ग न दिखाई पड़े, तब तक मंजिल बेबूझ होती है। और जब तक सीढ़ियां न दिखाई पड़ें, तब तक दूर दिखते हुए शिखरों का कोई भी मूल्य नहीं–वे स्वप्नवत हो जाते हैं। वे हैं भी या नहीं, इसका भी निर्णय नहीं किया जा सकता। कुछ दो-चार मार्गों से नमोकार के रास्ते को समझ लें। उन्नीस सौ सैंतीस में तिब्बत और चीन के बीच बोकान पर्वत की एक गुफा में सात सौ सोलह पत्थर के रिकॉर्ड मिले हैं–पत्थर के। और वे रिकॉर्ड हैं महावीर से दस हजार साल पुराने, यानी आज से कोई साढ़े बारह हजार साल पुराने। बड़े आश्र्चर्य के हैं, क्योंकि वे रिकॉर्ड ठीक वैसे हैं जैसे ग्रामोफोन का रिकॉर्ड होता है। ठीक उनके बीच में एक छेद है, और पत्थर पर ग्रूव्ज हैं–जैसे कि ग्रामोफोन के रिकॉर्ड पर होते हैं। अब तक राज नहीं खोला जा सका है कि वे किस यंत्र पर बजाए जा सकेंगे। लेकिन एक बात तय हो गई है–रूस के एक बड़े वैज्ञानिक डॉक्टर सर्जिएव ने वर्षों तक मेहनत करके यह प्रमाणित किया है कि वे हैं तो रिकॉर्ड ही। किस यंत्र पर और किस सुई के माध्यम से वे पुनरुज्जीवित हो सकेंगे, यह अभी तय नहीं हो सका। अगर एकाध पत्थर का टुकड़ा होता तो सांयोगिक भी हो सकता था। सात सौ सोलह हैं। सब एक जैसे, जिनमें बीच में छेद हैं। सब पर ग्रूव्ज हैं और उनकी पूरी तरह सफाई, धूल-धवांस जब अलग कर दी गई और जब विद्युत यंत्रों से उनकी परीक्षा की गई तब बड़ी हैरानी हुई, उनसे प्रतिपल विद्युत की किरणें विकीर्णित हो रही हैं। —ओशो