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सामाजिक और राजनैतिक समस्याओं पर प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए बाईस प्रवचन
…व्यवहार करते हैं। ये दोनों तरकीबें हैं। जिंदा आदमी को मार डालो और मरे हुए आदमी की पूजा करो। ये छूटने के रास्ते हैं, ये बचने के रास्ते हैं। फिर पूजा भी हम उसी की करते हैं जिसे हमने बहुत सताया हो। पूजा मानसिक रूप से पश्चात्ताप है। वह प्रायश्चित्त है। जिन लोगों को जीते जी हम सताते हैं, उनके मरने के बाद पूरा समाज उनकी पूजा करता है; ऐसे प्रायश्चित्त करता है। वह जो पीड़ा दी है, वह जो अपराध किया है, वह जो पाप है भीतर, उस पाप का प्रायश्चित्त चलता है, फिर हजारों साल तक पूजा चलती है। पूजा किए गए अपराध का प्रायश्चित्त है। लेकिन वह भी अपराध का ही दूसरा हिस्सा है। गांधी को जिंदा रहते में हम सताएंगे, न सुनेंगे उनकी, लेकिन मर जाने पर हम हजारों साल तक पूजा करेंगे। यह गिल्टी कांशियंस, यह अपराधी चित्त का हिस्सा है यह पूजा। और फिर इस पूजा के कारण हम सोचने-विचारने को राजी नहीं होंगे। पहले भी हम सोचने-विचारने को राजी नहीं होते। गांधी जिंदा हों तो हम सोचने-विचारने को राजी नहीं हैं। तब हम गालियां देकर, पत्थर मार कर, गोली मार कर दीवाल खड़ी करेंगे कि उनकी बातें सोचनी न पड़ें। फिर जब वे मर जाएंगे, तब भी हम सोचने-विचारने को राजी नहीं हैं। तब हम पूजा की दीवाल खड़ी करेंगे और कहेंगे, अब सोचना-विचारना उचित नहीं, अब तो पूजा करनी काफी है। महापुरुषों को या तो गोली मारते हैं हम या फूल चढ़ाते हैं, लेकिन महापुरुषों पर सोचते कभी भी नहीं हैं। मेरा गांधी से कोई विरोध नहीं है। बहुत प्रेम है। और इसलिए रोज-रोज वे मेरे रास्ते में आ जाते हैं। उन पर मुझे बात करनी अत्यंत जरूरी मालूम पड़ती है; क्योंकि इस पचास वर्षों में भारत के राष्ट्रीय आकाश में उनसे ज्यादा चमकदार कोई सितारा पैदा नहीं हुआ। उस सितारे पर आगे भी सोचना और विचार जारी रखना अत्यंत आवश्यक है। लेकिन जहां मेरा उनसे विचार-भेद है, वहां मैं निवेदन जरूर करना चाहता हूं। दो-तीन बिंदुओं को समझाना चाहूंगा। पहली बात, गांधी का विचार वैज्ञानिक नहीं है, अवैज्ञानिक है। गांधी का विचार नैतिक तो है, लेकिन वैज्ञानिक नहीं है, साइंटिफिक नहीं है। गांधी का व्यक्तित्व ही, गांधी के व्यक्तित्व में चीजों को समझने की जो प्रतिभा थी, वह प्रतिभा ही वैज्ञानिक नहीं थी। —ओशो
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