Product Description
पूर्ण प्यास एक निमंत्रण है वर्षा तो होती है। वर्षा तो हुई। दया पर हुई, सहजो पर हुई, मीरा पर हुई। तुम पर क्यों न होगी? वर्षा तो हुई है, वर्षा फिर-फिर होगी। प्यास चाहिए–गहन प्यास चाहिए। तुम्हारी प्यास जिस दिन पूर्ण है, उसी पूर्ण प्यास से वर्षा हो जाती है। तुम्हारी पूर्ण प्यास ही वर्षा का मेघ बन जाती है। प्यास और मेघ अलग-अलग नहीं हैं। तुम्हारी पुकार ही जिस दिन पूर्ण होती है, प्राणपण से होती है, जिस दिन तुम सब दांव पर लगा देते हो अपनी पुकार में, कुछ बचा नहीं रखते–उसी दिन परमात्मा प्रकट हो जाता है।
ओशो
अनुक्रम
#1: प्रभु की दिशा में पहला कदम
#2: संसार—एक अनिवार्य यात्रा
#3: पूर्ण प्यास एक निमंत्रण है
#4: भक्ति—प्रेम की निर्धूम ज्योतिशिखा
#5: यह जीवन—एक सराय
#6: वादक, मैं हूं मुरली तेरी
#7: धर्म है कछुआ बनने की कला
#8: करने से न करने की दिशा
#9: महामिलन का द्वार—महामृत्यु
#10: मंदिर की सीढियाँ : प्रेम, प्रार्थना, परमात्मा
उद्धरण: #9 – महामिलन का द्वार–महामृत्यु
भक्ति का सारा मार्ग हृदय का मार्ग है। इसलिए यहां वे ही सफल होते हैं जो पागल होने में कुशल हैं। यहां वे ही सफल होते हैं जो दिल खोल कर रो सकते हैं, हंस सकते हैं। यहां वे ही सफल होते हैं जो परमात्मा की शराब पीने में भयभीत नहीं हैं। क्योंकि उस शराब को पीने के बाद तुम तो बेहोश हो जाओगे, तुम्हारा तो कुछ बस न रह जाएगा अपने जीवन पर। फिर वही चलाएगा तो चलोगे, वही उठाएगा तो उठोगे। यद्यपि वह उठाता है और चलाता है और बड़े आनंद से जीवन चलता है और उठता है। अभी तो जीवन दुख ही दुख है, तब आनंद ही आनंद होता है। लेकिन तुम्हारा नियंत्रण न रह जाए अगर–वही भय है।
भक्ति की तरफ जाने में जो एकमात्र बात बाधा बनती है वह इतनी ही है कि तुम भयभीत हो कि मैं अपने नियंत्रण के बाहर हो जाऊंगा, अपना मालिक न रह जाऊंगा। परमात्मा को मालिक बनाना हो तो तुम अपने मालिक नहीं रह सकते। साहिब मेरी अरज है,…
उसे साहिब बनाना हो तो तुम्हें अपनी साहबियत छोड़ देनी पड़े। उसे मालिक बनाना हो तो तुम्हें सिंहासन से नीचे उतर आना पड़े। उतरो सिंहासन से! उतरते ही तुम पाओगे वह बैठा ही था; तुम्हारे बैठे होने की वजह से दिखाई नहीं पड़ता था। तुम उतर कर सिंहासन के सामने झुको और तुम पाओगे: उसकी अपरंपार ज्योति, उसकी अनंत ज्योति, उसका प्रसाद तुम्हें सब तरफ से भर गया है। रामकृष्ण कहते थे: तुम नाहक ही पतवारें खे रहे हो। अरे पाल खोलो! पतवारें रख दो। उसकी हवाएं बह रही हैं। वह तुम्हारी नाव को उस पार ले जाएगा।
भक्ति है पाल खोलना और ज्ञान है पतवार चलाना। पतवार में तो स्वभावतः तुम्हीं को लगना पड़ेगा। पाल भगवान की हवाएं अपने में भर लेते हैं और नाव चल पड़ती है–तुम्हारे बिना किए कुछ चल पड़ती है। समर्पण–और खोल दो पाल! अपना किया अब तक कुछ न हुआ। अब छोड़ो भरोसा अपने पर। अब उसके पैरों से चलो! अब उसकी आंखों से देखो! अब उसके ढंग से जीओ। अब उसके हृदय से धड़को। ये दया के सूत्र अनूठे हैं, तुम्हारे जीवन में क्रांति ला सकते हैं। जैसे किनका अनल को, सघन बनौ दे जार। अगर इनका एक अंगारा भी तुम्हारे भीतर पड़ गया तो तुम्हारा अंधकार नष्ट हो सकता है।
ओशो