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कौन सा ईश्र्वर झूठा ईश्वर है? मंदिरों में जो पूजा जाता है, वह ईश्र्वर झूठा है, वह इसलिए झूठा है कि उसका निर्माण मनुष्य ने किया है। मनुष्य ईश्र्वर को बनाए, इससे ज्यादा झूठी और कोई बात नहीं हो सकती है।
अनुक्रम
#1: जो मर जाए वह ईश्र्वर ही नहीं
#2: जो मिटेगा, वही पाएगा
#3: ज्ञान की पहली किरण
#4: प्रेम की भाषा
मनुष्य ईश्र्वर निर्मित नहीं कर सकता, लेकिन ईश्र्वर को उपलब्ध कर सकता है। मनुष्य ईश्र्वर की ईजाद नहीं कर सकता, लेकिन ईश्र्वर का आविष्कार कर सकता है। इनवेंट तो नहीं कर सकता, डिस्कवर कर सकता है। मनुष्य ने जितने भी ईश्र्वर ईजाद किए हैं वे सब झूठे हैं। और इन्हीं ईश्वरों के कारण, इन्हीं धर्मों, रिलिजंस के कारण रिलीजन, धर्म का दुनिया में कहीं कोई पता भी नहीं मिलता। जहां भी जाइएगा, कोई न कोई ईश्र्वर बीच में आ जाएगा और कोई न कोई धर्म। और धर्म से आपका कोई संबंध न हो सकेगा।
हिंदू बीच में आ जाएगा, ईसाई और मुसलमान और जैन और बौद्ध, कोई न कोई बीच में आ जाएगा। कोई न कोई दीवाल खड़ी हो जाएगी, कोई न कोई पत्थर बीच में अटक जाएगा और द्वार बंद हो जाएंगे। और ये द्वार परमात्मा से तो मनुष्य को तोड़ते ही हैं, मनुष्य को भी मनुष्य से तोड़ देते हैं। मनुष्य को अलग करने वाला कौन है? एक मनुष्य और दूसरे मनुष्य के बीच कौन सी दीवालें हैं? पत्थर की, मकानों की? नहीं। मंदिरों की, मस्जिदों की, धर्मों की, शास्त्रों की, विचारों की दीवालें हैं, जो एक-एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य से अलग किए हुए हैं। और स्मरण रहे कि जो दीवालें मनुष्य और मनुष्य को ही दूर कर देती हों, वे दीवालें मनुष्य को परमात्मा से कैसे मिलने देंगी?
यह असंभव है। यह असंभव है। अगर मैं आपसे दूर हो जाता हूं तो यह कैसे संभव है कि जो चीज मुझे आपसे दूर कर देती हो, वह मुझे उससे जोड़ दे जो कि सबका नाम है। यह संभव नहीं है। लेकिन इसी तरह का ईश्र्वर, इसी तरह का धर्म, हजारों-हजारों वर्षों से मनुष्य के मन पर छाया हुआ है। और यही कारण है कि पांच-छह हजार वर्षों के निरंतर, निरंतर चिंतन-मनन और ध्यान के बाद जीवन में धर्म का कोई अवतरण नहीं हो सका है। एक फॉल्स रिलीजन, एक मिथ्या धर्म हमारे और धर्म के बीच में खड़ा हुआ है। —ओशो
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