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सामाजिक और राजनैतिक समस्याओं पर प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए सात प्रवचन
मैं आपको कहूं कि कोई कितना भी कमजोर हो, एक कदम उठाने की सामर्थ्य सबमें है। हजार मील चलने की न हो, हिमालय चढ़ने की न हो, लेकिन एक कदम उठा लेने की सामर्थ्य सबके भीतर है। अगर हम थोड़ा सा साहस जुटाएं, तो एक कदम निश्चित ही उठा सकते हैं।…
#1: भारत का भाग्य
#2: असंतोष मार्ग है क्रांति का
#3: विचार-क्रांति की आवश्यकता
#4: अहिंसा का सार है–प्रेम
#5: सत्य है अनुभूति
#6: संतति-नियमन
#7: जिज्ञासा, सहस और अभीप्सा
भारत के संबंध में कुछ भी सोचना निश्चित ही चिंता से भरता है। भारत के संबंध में सोचता हूं, तो एक कड़ी मेरे मन में इस तरह घूमने लगती है जैसे कोई कागज की नाव पानी की भंवर में फंस जाए और चक्कर खाने लगे। वह कड़ी न मालूम किसकी है। उस कड़ी के आगे और क्या कड़ियां होंगी, वह भी मुझे पता नहीं। लेकिन जैसे ही भारत का खयाल आता है वह कड़ी मेरे मन में चक्कर काटती है, वह मेरे जहन में घूमने लगती है। और वह कड़ी यह है: ‘हर शाख पे उल्लू बैठे हैं, अंजामे-गुलिस्तां क्या होगा?’ अगर किसी फुलवारी में हर पौधे की शाखाओं पर उल्लू बैठे हों, तो उस फुलवारी का क्या होगा? उन उल्लुओं की तरफ देखो, तो फुलवारी का क्या होगा?…चिंता पैदा होती है। भारत में कुछ ऐसा ही हुआ है। बुद्धिहीनता के हाथ में भारत की पतवार है। जड़ता के हाथ में भारत का भाग्य है। नासमझियों का लंबा इतिहास है, अंधविश्वासों की बहुत पुरानी परंपरा है, अंधेपन की सनातन आदत है और उस सबके हाथ में भारत का भाग्य है।
लेकिन यह खयाल उठता है, यह सवाल भी कि आखिर भारत का यह भाग्य अंधेपन के हाथ में क्यों चला गया है? भारत का यह सारा भाग्य अंधकार के हाथों में क्यों है? सौभाग्य क्यों नहीं है भारत के जीवन में, दुर्भाग्य ही क्यों है? हजार साल तक दास रहे कोई देश, हजारों साल तक गरीब, दीन-हीन रहे कोई देश, हजारों वर्ष के विचार के बाद भी किसी देश का अपना विज्ञान पैदा न हो सके, अपनी क्षमता पैदा न हो सके; नये-नये देशों के सामने प्राचीनतम देश को हाथ फैला कर भीख मांगनी पड़े! अमरीका की कुल उम्र तीन सौ वर्ष है। तीन सौ वर्ष जिनकी संस्कृति की उम्र है, उनके सामने जिनकी संस्कृति की उम्रों को सनातन कहा जा सके; कोई दस हजार वर्ष पुरानी; उनको भीख मांगनी पड़े, तो दस हजार वर्ष से हम क्या कर रहे थे? दस हजार वर्षों में हमने पृथ्वी पर क्या किया है? हमारे नाम पर क्या है? हम दस हजार वर्ष चुपचाप बैठे रहे हैं…या हमने आंख बंद करके दस हजार वर्ष गंवा दिए हैं? और आगे स्थिति और विकृत होती चली जाती है।
—ओशो