Product Description
‘अमृत की दिशा’ एक बार फिर हमें उस पगडंडी पर से लिए चलती है जो चित्त की स्वततंत्रता, चित्त की सरलता और फिर चित्त की शून्य ता के पड़ाव से होती हुई हमें अपने खोए हुए घर की ओर लौटा लाती है। कुछ भोले-भाले तो कुछ बड़े-बड़े मुद्दों पर उठाए प्रश्न जैसे सत्यत-दर्शन, ईश्वचर-दर्शन, हठयोग जैसे क्लिआष्ठ मुद्दे—और ओशो ने हमारे बीच आकर हमारे तल को समझ कर सभी की चर्चा व समाधान बड़े प्रेम व करुणा से किया है।
ओशो का कहना है : ‘परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं है जिसको आप खोज लेंगे, परमात्मा: एक आनंद की चरम अनुभूति है, उस अनुभूति में आप कृतार्थ हो जाते हैं, आपमें कृतज्ञता पैदा होती है, वही परम आस्तिहकता है। और ऐसी आस्तिवकता की खोज जो मनुष्य नहीं कर रहा है वह अपने जीवन के अवसर को व्यर्थ खो रहा है’।
इस पुस्तक में ओशो हमें एक दिशा देते हैं—साहस की दिशा। साहस—उधार के विश्वासों से मुक्त होने का। साहस—तथ्यों को आर-पार देखने का। साहस—आत्म-जागरण के मार्ग पर चलने का। साहस—आनंदित होने का।
साथ ही चर्चा है मनुष्य-मन के कई प्रश्नों पर:
चित्त कैसे स्वतंत्र हो?
सत्य शास्त्रों में नहीं, तो कहां है?
पाप क्या है? क्या है उसका मूल?
अंतःसंघर्ष को कैसे मिटाएं?
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