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जीवन के विभिन्न पहलुओं पर सूरत में ओशो द्वारा दिए गए चार अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन
“नास्तिक और आस्तिक दोनों का जीवन असत्य का जीवन है। धार्मिक व्यक्ति न तो आस्तिक होता है, न नास्तिक होता है, धार्मिक व्यक्ति तो खोजी होता है। वह स्वीकार नहीं कर लेता यात्रा के पहले, वह मान नहीं लेता, वह खोज करता है।”
अध्याय शीर्षक
#1: क्या आपके द्वार खुले हुए हैं?
#2: धर्म भय पर खड़ा नहीं हो सकता
#3: विश्वास, श्रद्धा और विचार
#4: वस्त्र आपकी पहचान तो नहीं?
जीवन, जीवन का अर्थ और आनंद, जीवन का अभिप्राय और जीवन का सत्य केवल उन लोगों को उपलब्ध हो पाता है जो स्वयं को देखने में समर्थ हो जाते हैं। लेकिन हमारी आंखें बाहर देखती हैं भीतर नहीं, और हमारे कान बाहर सुनते हैं भीतर नहीं, और हमारे हाथ बाहर स्पर्श करते हैं भीतर नहीं। हमारी सारी दौड़, हमारे प्रयत्न और प्रयास, हमारे जीवन भर का श्रम कुछ ऐसी संपदा को जुटाने में व्यय और व्यर्थ हो जाता है जो संपदा भी अंततः हमसे छीन जाती है, लेकिन और एक संपत्ति है, एक और संपदा है जो स्वयं को जानने और पहचाने से उपलब्ध होती है। जो उस संपदा को पा लेता है, उसे न केवल जीवन का अर्थ और सत्य मिल जाता है, बल्कि वस्तुतः उसे ही जीवन भी मिल पाता है। क्योंकि उस सत्य को जाने बिना हम जो भी जानते हैं वह सब, वह सब मृत्यु में समा जाने को है और समाप्त हो जाने को है। उस सत्य को जो मनुष्य की आत्मा है जाने बिना हम जीते नहीं, धीरे-धीरे मरते हैं और इस धीरे-धीरे मरने के क्रम को ही जीवन समझ कर भूल कर बैठते हैं। जिसे हम जीवन जानते हैं, वह ग्रेजुअल डेथ, क्रमिक मरते जाने के अतिरिक्त और क्या है।
बच्चा जिस दिन पैदा होता है उसी दिन से मरने की क्रिया शुरू हो जाती है और अंत में जिसे हम मृत्यु कहते हैं वह कोई आकस्मिक घटना नहीं है, बल्कि जन्म के दिन जो प्रक्रिया शुरू हुई थी उसी की समाप्ति है।
रोज हम मर रहे हैं प्रतिक्षण और प्रतिपल, यह मरने कि क्रिया जिस दिन पूरी हो जाती है, कहते हैं, मृत्यु आ गई। लेकिन मृत्यु कहीं बाहर से नहीं आ जाती, मृत्यु हमारे भीतर का निरंतर विकास है। हमारे भीतर ही मृत्यु निरंतर विकसित होती रहती है। मृत्यु बाह्य घटना नहीं, आंतरिक प्रक्रिया है। जन्म के साथ उसका प्रारंभ होता है और मृत्यु के साथ उसकी पूर्णता होती है। तो जिसे हम जीवन कहते हैं वह जीवन नहीं है, बल्कि धीरे-धीरे मरते जाना है।
निश्चित ही यह जो क्रमिक मृत्यु है इस क्रमिक मृत्यु में न तो आनंद हो सकता है, न शांति हो सकती है, न सौंदर्य हो सकता है। मृत्यु तो होगी कुरूप, मृत्यु में तो होगा दुख, मृत्यु तो होगी एक पीड़ा। और इसीलिए हमारा एक पूरा जीवन दुख की एक लंबी कथा है।